सुल्तानिया अस्पताल में भर्ती दो मां अपने नवजात की एक झलक पाने को बिलख रही हैं। एक का बच्चा 16 दिन का तो दूसरी का महज 11 दिन का है। कोरोना के चलते उनकी ममता भी जैसे लॉकडाउन हो गई है। एक मां आठ दिन पहले इलाज के लिए अस्पताल आई तो यहीं भर्ती होना पड़ा। परिजन कोरोना संक्रमण के डर से शिशु को अस्पताल भी लेकर नहीं आ पा रहे हैं। दूसरी मां सुल्तानिया में भर्ती है और बच्चा हमीदिया में है। यहां भी लॉकडाउन के कारण दोनों को एक अस्पताल में शिफ्ट नहीं कर पा रहे हैं। वह बार-बार स्टाफ से पूछती है, मेरा बच्चा कैसा है, वे कई बार तंग आकर इतना ही कहते हैं, ठीक हो जाएगा तो बता देंगे। दोनों मां का दर्द उन्हीं की जुबानी…
आठ दिन से बेेटे की झलक तक नहीं देखी
मेरी सीजेरियन डिलीवरी हुई थी। सब कुछ ठीक था। अस्पताल से डिस्चार्ज हाेकर घर भी चली गई थी। लेकिन टांके पक गए। बच्चे काे घर पर छाेड़कर मां के साथ अस्पताल दिखाने आई थी। डाॅक्टर ने कहा, तुम्हारे टांके खुल गए हैं। अच्छा हुआ समय पर आ गई वरना दिक्कत हो सकती थी। उन्हाेंने मुझे तुरंत भर्ती कर लिया। इसके से बाद से घर नहीं जा सकी। लाॅकडाउन और काेराेना संक्रमण के डर से घरवाले बच्चे को अस्पताल भी नहीं ला पा रहे हैं। आठ दिन हो गए, बच्चे की एक झलक तक नहीं देख नहीं पाई हूं। डाॅक्टर से कई बार डिस्चार्ज करने को कह चुकी हूं। उन्होंने कहा था, जल्द डिस्चार्ज कर देंगे, उस बात को भी तीन दिन हो गए हैं। डॉक्टर आए ही नहीं है। मुझे नहीं पता घर में मेरा बच्चा किस हाल में होगा, कैसे उसके दूध का इंतजाम हो रहा होगा। मैं और मां दोनों ही अस्पताल में फंसे हुए हैं। कैसे भी जल्द डिस्चार्ज हो जाऊं और कलेजे के टुकड़े को सीने से लगाऊं।
आरती, (बेटे से दूर सुल्तानिया अस्पताल में भर्ती मां)
एक ही जवाब- ठीक हो गया तो बता देंगे
ग्यारह दिन पहले डिलीवरी हुई थी। उसके बाद से ही तबीयत ठीक न होने के कारण बच्चे को हमीदिया अस्पताल के शिशु रोग विभाग में भर्ती किया गया है। बताया गया है कि उसे सांस लेने में दिक्कत हाे रही थी। लॉकडाउन के चलते न मैं और न मेरे पति, हमीदिया अस्पताल जा पा रहे हैं। मुझे नहीं पता बच्चा कैसा है? समझ में नहीं आ रहा क्या करें। अस्पताल में काम करने वाले लाेगाें से बच्चे के बारे में पूछती हूं ताे वे एक ही जवाब देते हैं कि जब वह ठीक हाे जाएगा ताे बता देंगे। मैं तड़प रही हूं उससे मिलने के लिए। मन करता है कि उड़कर उसके पास पहुंच जाऊं और उसे खूब प्यार करूं। पति करोंद में हैं। उन्होंने दाे-तीन बार हमीदिया अस्पताल जाने की काेशिश की थी, लेकिन ऑटो या कोई साधन नहीं मिला। उल्टे पुलिस ने डंडे फटकार कर भगा दिया। पता नहीं कब उससे मिल सकूंगी।
फायजा, (करोंद निवासी मां जिसका बच्चा हमीदिया में भर्ती)
परिजन आवेदन दें तो उन्हें डिस्चार्ज किया जा सकता है
डाॅ. आईडी चाैरसिया, अधीक्षक, सुल्तानिया अस्पताल के मुताबिक, इस बारे में मुझे जानकारी नहीं थी। यह बात मुझे अभी पता चली है। मैं अस्पताल से दाेनाें महिलाओं के परिजनों को आने-जाने की अनुमति दिला सकता हूं। हालांकि इसके लिए उन्हें बाकायदा एक आवेदन देना होगा। बच्चों से दूर होने के आधार पर महिला को डिस्चार्ज भी किया जा सकता है। देखता हूं जो बेहतर हो सकता है, किया जाएगा।